Amir Khusro Biography in Hindi

Amir Khusro Biography in Hindi Jivini Jeevan Parichay 1235 -1334

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Amir Khusro Biography in Hindi

अमीर खुसरो की जीवनी हिंदी में

जन्म विवरण –

स्थान – एटा जिले के पटियाली

जन्म तिथि – 1235

परिवार –

माता – बीबी दौलत नाज़

पिता – अमीर मोहम्मद सेफुद्दीन

शिक्षक –

उस्ताद निजामुद्दीन औलिया

अबुल हसन यामीन उद-दीन खुसरो, जिन्हें अमीर खुसरो के नाम से जाना जाता है, एक इंडो-फ़ारसी सूफी गायक, संगीतकार, कवि और विद्वान थे, जो दिल्ली सल्तनत के अधीन रहते थे।

वह भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। वह दिल्ली, भारत के निजामुद्दीन औलिया के एक रहस्यवादी और आध्यात्मिक शिष्य थे।

 ख़ुसरो को कभी-कभी “भारत की आवाज़” या “भारत का तोता” (तूती-ए-हिंद) कहा जाता है, और इसे “उर्दू साहित्य का पिता” कहा जाता है।

ख़ुसरो को “कव्वाली का जनक” माना जाता है और उन्होंने भारत में गज़ल शैली के गीत पेश किए, जो अभी भी भारत और पाकिस्तान में व्यापक रूप से मौजूद हैं।

प्रारंभिक जीवन –

•        संगीत-जगत में अमीर खुसरो का नाम कभी भी भुलाया नही जा सकता। संगीत को आधुनिक रूप प्रदान कराने में उनका बहुत बड़ा हाथ रहा।

•        उनके पिता का नाम अमीर मोहम्मद सेफुद्दीन था जो बलवन से पटियाली आकर बस गये थे।

पारिवारिक पृष्ठभूमि –

•        अमीर खुसरो का जन्म आधुनिक उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था, जो उस समय की दिल्ली सल्तनत में था, अमीर सैफ उद-दीन महमूद, तुर्क मूल के व्यक्ति और बीबी दौलत नाज़, एक मूल भारतीय माँ के पुत्र थे।

•        अमीर सैफ उद-दीन महमूद एक सुन्नी मुसलमान थे। वह समरकंद के पास एक छोटे से शहर केश में पले-बढ़े, जो अब उज़्बेकिस्तान है।

•        अमीर सैफ उद-दीन ने बीबी दौलत नाज से शादी की, जो दिल्ली के नौवें सुल्तान घियास उद-दीन बलबन के एक भारतीय कुलीन और युद्ध मंत्री रावत अर्ज की बेटी थी। दौलतनाज का परिवार आधुनिक उत्तर प्रदेश के राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखता था।

आजीविका –

•        अमीर खुसरो प्रखर बुद्धि के व्यक्ति के थे। अत: पिता की मृत्यु के बाद उसे तत्कालीन गुलाम वंश के राजा गयासुद्दीन बलवन का राजाश्रय प्राप्त हो गया। वहा उनमें साहित्य और संगीत के प्रति विशेष रूचि उत्पन्न हुई।

•        कुछ दिनों तक कई राज्यों में नौकरी करने के बाद वह अलाउद्दीन खिलजी के पास चले गये। अलाउद्दीन खिलजी स्वयं संगीत का बड़ा प्रेमी था।उसने उसे राज-गायक बना लिया। खुसरों शायरी भी करते थे और प्रतिदिन अलाउद्दीन खिलजी को नये-नये गजल सुनाते थे। उनके दरबार में कई अन्य संगीतज्ञ भी थे, जिनमें खुसरों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।

•        कहा जाता हैं कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के देवगिरी राज्य पर चढाई कर विजय प्राप्त की तो अमीर खुसरो भी उनके साथ गये थे। गोपाल नायक वहाँ का राज्य गायक था। उन संगीतज्ञों में प्रतियोगिता हुई  और खुसरों ने उन्हें छल कपट से हरा दिया।

•        खुसरों को गोपाल नायक के विद्वता की सच्ची परख थी। अत: वह उसे दिल्ली ले गये और उसके सम्पर्क में रहकर संगीत में महत्वपूर्ण कार्य किये,जो इस प्रकार है-

•        अमीर खुसरो ने तत्कालीन जन – रूचि का अध्ययन किया और उसके अनुकूल नये वाद्य, राग, गीत एवं तालो की रचना की।

•        आधुनिक काल में लोकप्रिय गीत, छोटा ख्याल को जन्म देने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। कुछ विद्वानों के मतानुसार  उन्होंने छोटा ख्याल, कव्वाली तथा तराना तीनों का अध्ययन किया। उनके तराने प्राय: एकताल में होते थे तथा उनमे फारसी के शेर भी होते थे

•        इसके अतिरिक्त अमीर खुसरो ने कई नये वाद्यो को जन्म दिया। कहा जाता हैं कि उन्होंने दक्षिणी वीणा मे चार तार के स्थान पर तीन तार लगायें और उसे सहतार की संज्ञा दी।फारसी में सह के तीन अर्थ होते हैं। सहतार धीरे-धीरे बिगड़ता-बिगड़ता सितार हो गया।

•        तबले के विषय में भी कुछ विद्वानों ने अमीर खुसरो को इसका रचयिता कहा हैं। कहा जाता है कि उन्होंने पखावज को बीच से दो भागों में विभाजित कर तबले की रचना की।

•        कुछ नये रागों और कुछ नये तालों की रचना की। उनके रचित रागों में पूरिया,साजगिरी,पूर्वी,जिला, सहाना राग आदि, तालों में झूमरा,त्रिताल,आड़ा,चारताल,पश्तो,सूलफांक आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

•        अमीर खुसरो कई भाषाओं के विद्वान थे और 12 वर्ष की अवस्था से कविताएं लिखते थे।

•        कहा जाता हैं कि फारसी और संगीत पर 90 पुस्तकें लिखी जिनमें से केवल 22 ही उपलब्ध है।

कार्य –

•        हश्त-बिहिश्त, मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट से मुग़ल सचित्र पृष्ठ

•        तुहफत हम-सिघर (बचपन का उपहार), 1271 – खुसरो के पहले दीवान में 16 से 18 वर्ष की उम्र के बीच रचित कविताएँ हैं।

•        वेस्ट उल-हयात (जीवन का मध्य), 1279 – खुसरो का दूसरा दीवान।

•        मिफ्ताह उल-फुतुह (जीत की कुंजी), 1290 – जलाल उद-दीन फिरोज खलजी की जीत की प्रशंसा में खुसरो की दूसरी मसनवी।

•        ग़ुर्रत उल-कमाल (पूर्णता का प्रमुख), 1294 – खुसरो द्वारा 34 और 41 वर्ष की आयु के बीच रचित कविताएँ।

•        खज़ाईन उल-फ़ुतुह (विजय का खजाना), 1296 – अलाउद्दीन खिलजी के निर्माण कार्यों, युद्धों और प्रशासनिक सेवाओं का विवरण।

•        साकियाना – मसनवी जिसमें कुतुब उद-दीन मुबारक शाह खलजी की कुंडली है।

•        दुवल रानी – खिज्र खान (दुवल रानी और खिज्र खान), 1316 – अलाउद्दीन खिलजी के बेटे खिज्र खान से राजकुमारी दुवल रानी की शादी के बारे में एक त्रासदी।

•        नुह सिपिहर (नौ आसमान), 1318 – कुतुब उद-दीन मुबारक शाह खलजी के शासनकाल पर खुसरो की मसनवी, जिसमें भारत और इसकी संस्कृति की विशद धारणाएं शामिल हैं।

•        एजाज-ए-खुसरवी (खुसरो के चमत्कार) – गद्य का एक वर्गीकरण जिसमें पांच खंड शामिल हैं।

•        बकिया-नकिया (पवित्रता के अवशेष), 1317 – 64 वर्ष की आयु में खुसरो द्वारा संकलित।

•        अफ़ज़ल उल-फ़वैद (सबसे बड़ा आशीर्वाद), 1319 – निज़ामुद्दीन औलिया की शिक्षाओं से युक्त गद्य का एक काम।

•        तुगलक नामा (तुगलक की पुस्तक), 1320 – तुगलक वंश के शासनकाल की एक ऐतिहासिक मसनवी।

•        निहायत उल-कमाल (द जेनिथ ऑफ परफेक्शन), 1325 – खुसरो द्वारा संकलित शायद उनकी मृत्यु के कुछ सप्ताह पहले

•        आशिका – खुसरो हिंदी भाषा को शानदार सम्मान देते हैं और इसके समृद्ध गुणों की बात करते हैं। [47] यह एक मसनवी है जो देवल देवी की त्रासदी का वर्णन करती है। इसामी द्वारा कहानी का समर्थन किया गया है।

•        किस्सा चाहर दरवेश (चार दरवेशों की कथा) – खुसरो द्वारा निजामुद्दीन औलिया को सुनाई गई एक दास्तान।

•        हलिक बारी – फारसी, अरबी, और हिंदवी शब्दों और वाक्यांशों की एक छंदबद्ध शब्दकोष अक्सर अमीर खुसरो को जिम्मेदार ठहराया जाता है। हाफिज महमूद खान शिरानी ने तर्क दिया कि यह 1622 में ग्वालियर में अइया उद-दीन हुसरू द्वारा पूरा किया गया था।

•        जवाहिर-ए-खुसरवी – एक दीवान जिसे अक्सर ख़ुसरो के हिंदवी दीवान के रूप में जाना जाता है।

•        लोकप्रिय संस्कृति में –

•        1978 की फिल्म जूनून खुसरो की आज रंग है के गायन के साथ शुरू होती है, और फिल्म की साजिश कविता को विद्रोह के प्रतीक के रूप में नियोजित करती है।

•        अमीर खुसरो, ओम प्रकाश शर्मा द्वारा निर्देशित उनके जीवन और कार्यों को कवर करने वाली एक वृत्तचित्र फीचर 1974 में रिलीज़ हुई। इसे भारत सरकार के फिल्म प्रभाग द्वारा निर्मित किया गया था।

•        अमीर खुसरो, 1980 के दशक में राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारक, डीडी      नेशनल पर खुसरो के जीवन और कार्यों पर आधारित एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला प्रसारित हुई।

•        उन्हें संजय लीला भंसाली द्वारा 2018 की भारतीय फिल्म पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी कवि के रूप में अभिनेता भवानी मुजामिल द्वारा चित्रित किया गया था।

•        25 दिसंबर 2020 को पाकिस्तानी गायिका मीशा शफी और इंस्ट्रूमेंटल फंक बैंड मुगल-ए-फंक ने सहयोग किया और कविता का एक संस्करण जारी किया।

हिंदुस्तानी संगीत में योगदान –

कव्वाली –

•        खुसरो को 13वीं शताब्दी के अंत में फारसी, अरबी, तुर्किक और भारतीय गायन परंपराओं को मिलाकर सूफी भक्ति गीत कव्वाली बनाने का श्रेय दिया जाता है।

•        खुसरो के शिष्य जो कव्वाली गायन में विशिष्ट थे, उन्हें बाद में  कव्वाल और कलावंत के रूप में वर्गीकृत किया गया।

तराना और त्रिवट

•        तराना पूरी तरह से खुसरो का आविष्कार था। तराना एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ गीत होता है। तिलाना इसी शब्द का अपभ्रंश रूप है। सच है, खुसरो के पास शुक-अक्षर (अर्थहीन शब्द) और पाट-अक्षर (मृदंग के स्मृति चिन्ह) का उपयोग करते हुए निर्जीत गीतों का उदाहरण था।

•        सबसे पहले, उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी शब्दों को नरम व्यंजन के साथ पेश किया। दूसरे, उसने इन शब्दों को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि उनका कुछ अर्थ निकलता।

•        भाव को पूर्ण करने के लिए उन्होंने हिंदी के कुछ शब्दों का भी परिचय कराया…। यह केवल ख़ुसरो की प्रतिभा थी जो इन शब्दों को इस तरह व्यवस्थित कर सकती थी कि कुछ अर्थ निकल सके।

•        ऐसा माना जाता है कि खुसरो ने तराना शैली का आविष्कार राग कदंबक में गोपाल नाइक की व्याख्या को पुन: प्रस्तुत करने के अपने प्रयास के दौरान किया था।

•        खुसरो ने गोपाल नाईक को छह दिनों तक छुपाया और सुना, और सातवें दिन, उन्होंने अर्थहीन शब्दों (मृदंग बोल) का उपयोग करते हुए नाईक के गायन को पुन: प्रस्तुत किया और इस प्रकार तराना शैली का निर्माण किया।

सितार –

•        सितार के आविष्कार का श्रेय खुसरो को दिया जाता है। उस समय भारत में वीणा के कई संस्करण प्रचलित थे।

•        उन्होंने 3 तार वाली त्रितंत्री वीणा को एक सेटर के रूप में फिर से नाम दिया जो अंततः सितार के रूप में जाना जाने लगा।

मृत्यु-

•        सन् 1334 में उनके उस्ताद निजामुद्दीन औलिया का देहावसान हो जाने से उन्हें हार्दिक दुख हुआ।उस समय से वे समाज से विरक्त रहने लगे उन्हें अपना जीवन भार स्वरूप मालूम पडने लगा और सन् 1335 में अपने प्राण त्याग दिये।

•        दिल्ली में उनकी कब्र उनकी गुरु के पायताने बनाई गयीं है। जहां आज भी प्रतिवर्ष कव्वाल लोग उनकी याद में उर्स मनाते हैं।

आमिर खुसरो प्रश्न उत्तर –

आमिर खुशरो का पूरा नाम था ?

आमिर खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यामीन उद-दीन खुसरो था

आमिर खुसरो का जन्म कहाँ और कब हुआ था ?

स्थान – एटा जिले के पटियाली
जन्म तिथि – 1235

आमिर खुसरो के माता पिता का क्या नाम था ?

माता – बीबी दौलत नाज़
पिता – अमीर मोहम्मद सेफुद्दीन

छोटे ख्याल और कव्वाली का जनक कौन था ?

आमिर खुसरो
आधुनिक काल में लोकप्रिय गीत, छोटा ख्याल को जन्म देने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। कुछ विद्वानों के मतानुसार  उन्होंने छोटा ख्याल, कव्वाली तथा तराना तीनों का अध्ययन किया। उनके तराने प्राय: एकताल में होते थे तथा उनमे फारसी के शेर भी होते थे

आमिर खुसरो ने संगीत की शिक्षा किस्से ली ?

उस्ताद निजामुद्दीन औलिया

सितार का अविष्कार किसने किया था ?

आमिर खुसरो ने दक्षिणी वीणा मे चार तार के स्थान पर तीन तार लगायें और उसे सहतार की संज्ञा दी।फारसी में सह के तीन अर्थ होते हैं। सहतार धीरे-धीरे बिगड़ता-बिगड़ता सितार हो गया।


तबले का अविष्कार किसने किया था ?

तबले के विषय में भी कुछ विद्वानों ने अमीर खुसरो को इसका रचयिता कहा हैं। कहा जाता है कि उन्होंने पखावज को बीच से दो भागों में विभाजित कर तबले की रचना की।


आमिर खुसरो ने कौन कौन से राग व ताल की रचना की ?

कुछ नये रागों और कुछ नये तालों की रचना की। उनके रचित रागों में पूरिया,साजगिरी,पूर्वी,जिला, सहाना राग आदि, तालों में झूमरा,त्रिताल,आड़ा,चारताल,पश्तो,सूलफांक आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

खुसरो की मृत्यु कब हुई ?

       सन् 1334 में उनके उस्ताद निजामुद्दीन औलिया का देहावसान हो जाने से उन्हें हार्दिक दुख हुआ।उस समय से वे समाज से विरक्त रहने लगे उन्हें अपना जीवन भार स्वरूप मालूम पडने लगा और सन् 1335 में अपने प्राण त्याग दिये।
•        दिल्ली में उनकी कब्र उनकी गुरु के पायताने बनाई गयीं है। जहां आज भी प्रतिवर्ष कव्वाल लोग उनकी याद में उर्स मनाते हैं।

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